भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम मेरे सपनों को छूकर / श्यामनन्दन किशोर

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:18, 26 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्यामनन्दन किशोर |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम मेरे सपनों को छूकर
साकार बना दो, तो जानूँ!

आँसू से अपने यौवन का
निष्ठुर शृंगार सजाता हूँ।

मैं अपनी पीर भुलाने को
जगती को गीत सुनाता हूँ।

पाषाणी भी हिल जाती है
जब मेरा स्वर लहराता है;

पर मेरे दिल का घाव कठिन
पहिचान न कोई पाता है।

दुख के इस सागर में निर्मम
मुझको न किनारा मिल पाया।

अब तलक-तुनुक तिनकों का भी
कब हाय सहारा मिल पाया!

तुम लहरों को ही नौका की
पतवार बना दो, तो जानूँ।