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तुम हँसती, झड़ती शेफाली / श्यामनन्दन किशोर
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तुम हँसती, झड़ती शेफाली!
चुपके मिलन-यामिनी में खिल,
श्वास-सुरभि से पल-पल हिल-हिल
लद जाती कामना-कली से
जीवन की हर डाली-डाली!
तुम हँसती, झड़ती शेफाली!
तुम मिलती, मिलता जीवन है
हँसता प्राणों का उपवन है।
धुल जाती है हास-रश्मि से
कठिन निराशा की अँधियाली!
तुम हँसती, झड़ती शेफाली!
यह न चाह, जो पल-पल घटती।
जलन चातकों की कब मिटती?
पी-पी कर नयनों से छवि यह,
मैंने अपनी प्यास बढ़ा ली!
तुम हँसती, झड़ती शेफाली!
(7.7.54)