भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बरसाने में सामरे की होरी रे / ब्रजभाषा
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:49, 27 नवम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=ब्रजभाष...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
♦ रचनाकार: अज्ञात
भारत के लोकगीत
- अंगिका लोकगीत
- अवधी लोकगीत
- कन्नौजी लोकगीत
- कश्मीरी लोकगीत
- कोरकू लोकगीत
- कुमाँऊनी लोकगीत
- खड़ी बोली लोकगीत
- गढ़वाली लोकगीत
- गुजराती लोकगीत
- गोंड लोकगीत
- छत्तीसगढ़ी लोकगीत
- निमाड़ी लोकगीत
- पंजाबी लोकगीत
- पँवारी लोकगीत
- बघेली लोकगीत
- बाँगरू लोकगीत
- बांग्ला लोकगीत
- बुन्देली लोकगीत
- बैगा लोकगीत
- ब्रजभाषा लोकगीत
- भदावरी लोकगीत
- भील लोकगीत
- भोजपुरी लोकगीत
- मगही लोकगीत
- मराठी लोकगीत
- माड़िया लोकगीत
- मालवी लोकगीत
- मैथिली लोकगीत
- राजस्थानी लोकगीत
- संथाली लोकगीत
- संस्कृत लोकगीत
- हरियाणवी लोकगीत
- हिन्दी लोकगीत
- हिमाचली लोकगीत
बरसाने में सामरे की होरी रे॥ टेक
उड़त गुलाल लाल भये बदरा, मारत भरि भरि झोरी रे॥
कै मन तो यानै रंग घुरायौ, कै मन केशरि घोरी रे।
नौ मन तो यानै रंग घुरायो, दस मन केशर घोरी रे।
कौन गाम के कुँवर कन्हैया, कौन गाम की गोरी रे।
नन्दगाँव को कुमर कन्हैया, बरसाने की गोरी रे।
कहा हाथ में कृष्ण कन्हैया, कहा हाथ में लिये गोरी रे।
ढाल हाथ में कुमर कन्हैयाजी, लठा हाथ में गोरी रे।
कहा कर रहे ग्वाल बाल सब, कहा करें सब गोरी रे।
ढाल रोपिरहे ग्वाल बाल सब, लठा चलाय रहीं गोरी रे॥