भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मधुर है भूलने का स्वाद / मुइसेर येनिया
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:10, 7 दिसम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुइसेर येनिया |अनुवादक=मणि मोहन |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
औरों की तरह तुम भी भूल जाओगे
और अपने प्रिय का चेहरा वापिस रख आओगे
जहाँ से मिला था तुम्हे
शायद किसी मस्जिद के सहन में
उस नरसंहार में जिसे भूलना कहते हैं
छाती सूखती है, त्वचा सिकुड़ जाती है
औरों की तरह तुम भी भूल जाओगे
या फिर भूलने की जुगत तलशोगे
बहुत आसान है एक प्रेमी को भूलना
लोग अपने अत्यन्त प्रिय को भूल जाते हैं
और किसी अजनबी का चेहरा उनके ज़ेहन में आ जाता है
तुम भी भूल जाओगे
मधुर है
भूलने का स्वाद ।