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दोऊ गल बाहीं दिये / प्रेमघन
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दोऊ गल बाहीं दिये ठाढ़े जमुना तीर।
मंगलमय प्रातहि उठे राधा श्री बलबीर॥
राधा श्री बलबीर दोऊ दुहुँ रस अनुरागे।
झँपत पलक द्रिग अरुन भये घूमत निशि जागे॥
बद्री नारायन छुटि कच शुभ राजत सोऊ।
चुटकी दै जमुहात खरे अरसाने दोऊ॥