भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भले भाल पर बिन्दु सिन्दूर सोहै / प्रेमघन
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:19, 30 जनवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
भले भाल पै बिन्दु सिन्दूर सोहै,
लखे जाहिके कोटि कन्दर्प मोहै।
घन श्याम से ह्याँ घनश्याम राजैं,
इतै दामिनी हूँ तिया देख लाजैं॥