भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छहरैं मुख पै घनश्याम से केश / प्रेमघन

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:47, 2 फ़रवरी 2016 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छहरैं मुख पै घनश्याम से केश इतै सिर मोर पखा फहरैं।
इत गोल कपोलन पै अति लोल अमोल लली मुक्ता थहरैं॥
इहि भाँति सो बद्रीनरायन जू दोऊ देखि रहे जमुना लहरैं।
निति ऐसे सनेह सों राधिका श्याम हमारे हिये मैं सदा विहरैं॥