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विफता गेर दई हर नै / मेहर सिंह
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हे बहू तावल करकै चालिए हे दुःख पा रह्या मेरा गात
विफता गेर दई हर नै।टेक
अपणा भेद बता दे मन का
दुःख भोग्या रात और दिन का
कर रही तन का बेहाल हे रही कष्ट भोग दिन रात
क्यूं छोड़ कै घर नै।
मदनावत सीता सतवन्ती,
जिनका जिक्र सदा से सुणती
उस दमयन्ती की ढाल हे तेरी खोटी लागी स्यात
टोहवती फिर रही बर नै।
मैं थारी करकै आगी मेर,
खड़ी हो क्यूं ला राखी देर
तेरी टेर सुणैं तत्काल हे ओ तीन लोक का नाथ
रट्या कर सच्चे ईश्वर नै।
मेहर सिंह सीख सुर ज्ञान,
तेरा हो कवियों में सम्मान
कर खानदान का ख्याल हे बहू ईज्जत तेरे हाथ
तेरे पुचकार दयूं सिर नैं।