Last modified on 22 फ़रवरी 2016, at 12:13

पावस - 7 / प्रेमघन

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:13, 22 फ़रवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

उड़ैं बक औलि अनेकन व्योम,
विराजत सैन समान महान।
भरे घन प्रेम रटैं कवि चातक,
कूकि मयूर करै रस गान॥
छनै छनही छन जोन्ह छुवै,
छिन छोर निसान छटा छहरान।
चलाहक पै जनु आवत आज,
है पावस भूपति बैठि विमान॥