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कारोॅ बादल ढलमल छै / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'

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कारोॅ बादल ढलमल छै
वै पर नदियोॅ खलखल छै।

पर्वत सबटा चूर लगै
बंजर नाँखि जंगल छै।

खनकै छै खाली तलवारे
डरलोॅ-डरलोॅ पायल छै।

केकरा कौनें देतै ढाढ़स
सबके आँख तेॅ छलछल छै।

ई युग मेॅ आबी केॅ आबेॅ
फूल लगै कि पत्थल छै।

दुख केकरोॅ लेॅ काँटोॅ नाँखि
सारस्वत लेॅ मलमल छै।