भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शहरे हेनोॅ आबेॅ गाँव / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:19, 24 फ़रवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नन्दलाल यादव 'सारस्वत' |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
शहरे हेनोॅ आबेॅ गाँव
कादोॅ-कीचड़; कन्नेॅ जाँव।
कहूँ नै कोयल केरोॅ बोल
अमराई मेॅ काँव, काँव, काँव।
कत्तेॅ जल्दी धोॅन हसोतौं
सबकेॅ एक्के यहा निसाँव।
दूर तलक बस्ती नै सूझै
थकलोॅ जाय छै की रं पाँव।
सारस्वतोॅ लेॅ बीहड़ जंगल
एक यहा बचलोॅ छै ठाँव।