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दुख के बोझ बुढ़ारी पर / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'

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दुख के बोझ बुढ़ारी पर
गिद्धा रहै अटारी पर।

बेटा बुढ़लेल्होॅ होलोॅ
बेटी एक कुँआरी पर।

धोॅन वहा तेॅ चीज छिकै
नाच नचावै थारी पर।

ओकरोॅ गोड़ोॅ के की पूछौ
दौड़ै छै जे आरी पर।
चैन नै कभियो पावेॅ पारेॅ
जे उछलै छै गारी पर।

सारस्वतोॅ के गजल की छिकै
फूल फुलैलोॅ ठारी पर।