भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बचलोॅ भेद मिटैलोॅ जाय / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:26, 24 फ़रवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नन्दलाल यादव 'सारस्वत' |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बचलोॅ भेद मिटैलोॅ जाय
सबके मोॅन अघैलोॅ जाय!

अपनोॅ किस्मत अपने हाथें
सबकेॅ बात बतैलोॅ जाय।

धन तेॅ बहुत कमैलोॅ गेलै
आबेॅ धरम कमैलोॅ जाय।

पिंजड़ा मेॅ गुमसुम चिड़ियाँ
सबकेॅ चलोॅ उड़ैलोॅ जाय।

मलकी-मलकी कदम बढ़ावोॅ
अन्धकार ठो छैलोॅ जाय।

अलग-अलग सुर टुटनै छै
मिली-जुली केॅ गैलोॅ जाय।

जे ठो निभेॅ नेहोॅ-प्रमोॅ सेॅ
रिश्तो वही निभैलोॅ जाय।