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बचलोॅ भेद मिटैलोॅ जाय / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'
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बचलोॅ भेद मिटैलोॅ जाय
सबके मोॅन अघैलोॅ जाय!
अपनोॅ किस्मत अपने हाथें
सबकेॅ बात बतैलोॅ जाय।
धन तेॅ बहुत कमैलोॅ गेलै
आबेॅ धरम कमैलोॅ जाय।
पिंजड़ा मेॅ गुमसुम चिड़ियाँ
सबकेॅ चलोॅ उड़ैलोॅ जाय।
मलकी-मलकी कदम बढ़ावोॅ
अन्धकार ठो छैलोॅ जाय।
अलग-अलग सुर टुटनै छै
मिली-जुली केॅ गैलोॅ जाय।
जे ठो निभेॅ नेहोॅ-प्रमोॅ सेॅ
रिश्तो वही निभैलोॅ जाय।