Last modified on 24 फ़रवरी 2016, at 16:29

सब लगलोॅ छै दावोॅ मेॅ / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:29, 24 फ़रवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नन्दलाल यादव 'सारस्वत' |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सब लगलोॅ छै दावोॅ मेॅ
छेद बहुत छै नावोॅ मेॅ।

ओकरोॅ कीमत की वैं जानै
जे मिललोॅ छै फावोॅ मेॅ।

पहिलैं सेॅ कम दुख नै हमरोॅ
नोन भरोॅ नै घावोॅ मेॅ।

पुरबा के सर झुकलोॅ-झुकलोॅ
पछिया के छै तावोॅ मेॅ।

नीति-नियम केॅ बिकतेॅ देखलां
दस पैसा के भावोॅ मेॅ।

सारस्वतो तेॅ हार नै मानै
बड़ी धूप छै धाँवोॅ मेॅ।