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सब लगलोॅ छै दावोॅ मेॅ / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'
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सब लगलोॅ छै दावोॅ मेॅ
छेद बहुत छै नावोॅ मेॅ।
ओकरोॅ कीमत की वैं जानै
जे मिललोॅ छै फावोॅ मेॅ।
पहिलैं सेॅ कम दुख नै हमरोॅ
नोन भरोॅ नै घावोॅ मेॅ।
पुरबा के सर झुकलोॅ-झुकलोॅ
पछिया के छै तावोॅ मेॅ।
नीति-नियम केॅ बिकतेॅ देखलां
दस पैसा के भावोॅ मेॅ।
सारस्वतो तेॅ हार नै मानै
बड़ी धूप छै धाँवोॅ मेॅ।