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ख़त जो तुमने लिखा नहीं होता / आलोक यादव
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ख़त जो तुमने लिखा नहीं होता
ज़ख़्म दिल का हरा नहीं होता
अपना अपना ख़याल है लेकिन
दर्द, दिल की दवा नहीं होता
तूने चाहा नहीं मुझे वरना
इस ज़माने में क्या नहीं होता
बेख़बर तुम रहो परेशाँ हम
यूँ कोई सिलसिला नहीं होता
दाग़ ही दाग़ जो दिखाए, वो
आईना आईना नहीं होता
सब हैं हालात के फ़रेब ‘आलोक’
कोई खोटा, खरा नहीं होता
दिसम्बर 2013