भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दो कमरे बनवाए हैं / अनिमेष मुखर्जी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:51, 22 मार्च 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिमेष मुखर्जी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
दो कमरे बनवाए हैं
दिल की छत पर
कुछ लम्हे
वक्त से लोन लेकर
इनमें ज़रा यादें छोड़ जाओ
तो कब्ज़ा हो जाए।