भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शरद ऐलै सखी / ऋतुरंग / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:21, 27 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह=ऋतुरं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
शरद ऐलै सखी।
सुतलोॅ छै धानोॅ केॅ तकिया बनाय
रौद छाती रखी।
सोना रङ देहोॅ पर सोन्है के चुनरी
नीलम के पलंगोॅ पर पिन्ही केॅ मुनरी
ओघरैली पटरानी सोनामुखीं
शरद ऐलै सखी।
करवट जों बदलै तेॅ शीशोॅ हिलै छै
मूँ ठो पदमनिये रङ छिनमान मिलै छै
रही-रही नीनोॅ में जाय छै टघो
शरद ऐलै सखी।
छाती सें जखनी पीताम्बरी टघरै
काँचोॅ के धरती पर पानी रङ पसरै
बेसुध छै मालती के सब रस चखी
शरद ऐलै सखी।
-14.10.95