भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हिन्दु रो देवता खड़ा खड़ा / छोटे लाल मंडल
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:38, 28 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=छोटे लाल मंडल |अनुवादक= |संग्रह=हस...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
एक बुढ़िया ने फुल बेची के,
करै गुजारा तीरथो में,
एक दिन कुत्ता विष्टा कैलकै,
जगह भेलै अपावन में।
फूलो माला से ढकी देलकै
बुढ़िया बड़ी चतुराई सें,
देखा देखी फूलो सभ्भे चढ़ावै
बड़का देवता छै मानी के।
आमदनी केरो भरमार देखी के
झगड़ै हिन्दु मुसलिम भाय,
लाठी पैनो डंटा के वरसा,
भेंट चढ़ावा हम्मीं पांव।
ममला उठलै कोट कचहरी,
जांचें लागलै धियान जमाय,
हिन्दु रो देवता खड़ा खड़ा रहै
मुसलोन के पड़ा समाय।
जातिवाद सम्प्रदाय वाद के झगड़ा भारी,
देखै तनिसा फूल हटाय,
नै देखै छै खड़ा खड़ा छै
नै देखै छै पड़ा समाय।
यहाँ ते गहमकै सड़लो विष्ठा,
महामारी के भय वड़ा,
नै खड़ा खड़ा नै पड़ा पड़ा छै
छै विल्कुल गंदा सड़ा सड़ा।