भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पण्डित-पतरा / रामदेव भावुक
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:42, 8 जून 2016 का अवतरण
झूठ लीखल सब पण्डित के पतरा मे छै।
साँच लीखल सुहागिन के अँचरा मे छै।
स्नेह स्वाती बरसयतै नयन के गगन,
प्यासल मन के पपीहा असरा मे छै।
बिना घास के धेनु गाय न्याय के,
रोज दूहै छै ऊ हिम्मत जेकरा मे छै।
जेकर सत्ता के सीमा नै दुनिया मे छै,
सबके सीमा ओकरे खाता-खेसरा मे छै।
पीड़ पिलकै जे भावुक छै ओकरे पता,
जलन केतना जीवन के जतरा मे छै।