भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धान हथिया के हाथ मे छै / रामदेव भावुक

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:45, 8 जून 2016 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ढोल दूर के झांझ होतै, मौसम अबकी बांझ होतै
हमरा कि पता असरा के, उगते सूरज सांझ होतै

बिसखल बादल गाढ़ होतै, बेदर्दी आषाढ़ होतै
सावन अबकी सुखले रहतै, भादो मे लगै छै बाढ़ होतै

चित चंचल चितरा के छै, आदत बिगड़ल अदरा के छै
कृष्ण-घटा जब नै बरसल, तब की ठीक उपरबदरा के छै

हम स्वाती के बून्द पर नाचब नै, पतरा बदलि देब बांचब नै
पानी के पता नै तब तक भेंटत, जब तक पताल तोड़ि के जांचब नै

गरजतै सिंह बरसतै नै, बादल बिजली लए तरसतै नै
पूख रुख रहतै अबकी, पुरवा पानी परसतै नै

हम मेटि देबै जे माथ मे छै, अब एक पाइ नै साथ मे छै
किछु धान घोघ मे कनिया के, किछु धान हथिया के हाथ मे छै

दोष किछु मौसम के, किछु बादल के छै किछु लोचन के, किछु काजल के छै
छै किछु दोष इन्द्र के शासन के, किछु दोष पवन पागल के छै