भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जल आरो जीव / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:45, 9 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रप्रकाश जगप्रिय |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
के डालै कचरा छै जल में
बदली रहलै जल काजल में।
कल जे नदी कहावै छेलै
देखोॅ आय छै ऊ दलदल में।
जे खलखल रं बहतें रहलै
भौरा रं ऊ बन्द कमल में।
जों नद्दी ही कल नै होतै
जीव कहौं की दिखतै थल में?