भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लिखी हुई मजबूरी है / प्रदीप शुक्ल

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:41, 14 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप शुक्ल |अनुवादक= |संग्रह=अम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बन्धु,
तुम्हारे चेहरे पर ही
लिखी हुई मजबूरी है

जो भी उस पाले में होगा
मारा जाएगा
इस पाले में वही रहेगा
जो गुण गायेगा
माना चारण गीत तुम्हे
कंठस्थ नहीं है
मौन तुम्हारा तुम्हे जगह
पूरी दिलवाएगा
बन्धु,
तुम्हे ज़िंदा रखने में
चुप्पी बहुत जरूरी है

जिधर हवा बह रही उधर
बह जाओ प्यारे
नहीं अकेले, लाखों होंगे
संग तुम्हारे
धारा के विपरीत चलोगे
तो डूबोगे
बचो, नहीं हो जाओगे
कुलबर्गी, पनसारे
बन्धु,
तुम्हारा शोक मनाना
बेहद गैरजरूरी है

बन्धु,
तुम्हारे चेहरे पर ही
लिखी हुई मजबूरी है।