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थक गया है बहुत होरीलाल / प्रदीप शुक्ल
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स्वेद कण उभरे हुए हैं भाल
पर अभी रुकना नहीं है
थक गया है बहुत होरीलाल
पर अभी रुकना नहीं है
उमर होगी साठ के उस पार
सिकुड़ता है जिस्म का आकार
है चढ़ाई, मंद होती चाल
पर अभी रुकना नहीं है
धूप के गोले बरसते हैं
पाँव रुकने को तरसते हैं
प्यास के मारे बुरा है हाल
पर अभी रुकना नहीं है
गाँव से आया हुआ सन्देश
खेत में हैं धान के अवशेष
हड्डियों पर बस बची है खाल
पर अभी रुकना नहीं है
थक गया है बहुत होरीलाल
पर अभी रुकना नहीं है।