भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बादल उतरे ताल पर / प्रदीप शुक्ल
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:39, 14 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप शुक्ल |अनुवादक= |संग्रह=अम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जाने कहाँ कहाँ से आये
बादल उतरे ताल पर
देख उन्हें
हँस पड़ी हवायें
लहराएँ, वो सौ बल खाएं
बाँस वनों में इठलाती हैं
चुपके कानों में बतियायें
पत्ता पत्ता
बहक रहा है
मदिर हवा की चाल पर
बादल उतरे ताल पर
लुढ़क रहीं
बूँदें पुरईन पर
जैसे हो मोती की थाली
चमक उठीं पंकज पंखुरियाँ
गहराई होठों की लाली
नन्ही सी
जलकुम्भी देखो
चुम्बन देती गाल पर
बादल उतरे ताल पर
चिड़ियों ने
गौनई शुरू की
बरगद की डाली के ऊपर
पत्तों की थापों पर बूँदे
नाच रहीं हैं ठुमक ठुमक कर
इन्द्रधनुष का मुकुट
सज रहा
है धरती के भाल पर
बादल उतरे ताल पर।