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हद तो तब होगी / शरद कोकास

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यह खालिस डर नहीं है
किसी पागल के तन पर अटका
पैबन्दों से भरा चीथड़ा
संगीन की नोक पर
हवा में ध्वज की तरह लहराएगा
उसके हाथ की रोटी
उसमें चक्र की तरह स्थापित हो जाएगी
फूल नहीं बरसेंगे आसमान से
रक्त की एक धारा निकलेगी
खून के छींटे बिगाड़ देंगे
कुछ चेहरों का मेकअप

झोपड़ियाँ चिता बन जाएंगी
उनसे निकलता धुआँ
जेट के धुएँ की तरह
दिखाया जाएगा आसमान में
झूठ से लबालब भरे दिलों में
बेमौत मरने वालों के लिए
दो शब्द भी नहीं होंगे सांत्वना के

हद तो तब होगी
जब चीख से हिलते होंठों की
फिल्म उतारी जाएगी
उन्हें डब किया जाएगा
किसी दूसरी भाषा में
जैसे आप गा रहे हों
सारे जहाँ से अच्छा
देश यह हमारा।

-1996