जायज़ / शरद कोकास

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हमारे साथ न्याय नहीं हुआ
हमें छोटा समझा गया
इतना कह देना काफ़ी नहीं
कहना होगा कि हमें मंजूर नहीं
दान में मिली ज़िन्दगी

भीड़ का हिस्सा बनने से बचना होगा
बदलना होगा विचार को कथनी में
बहस करनी होगी मनुष्यता के संविधान पर
कलम चलानी होगी ज़रूरतों के पक्ष में

अभद्रता ही सही
देनी होंगी गालियाँ
अपमान का बदला देना होगा
ग्लानि को फेंकना होगा आज और अभी

हम मानते हैं
यह अब तक की
तमाम परम्पराओं के खिलाफ़ है
फिर भी इस दुनिया से हमें प्यार है
अपने अनुसार चाहते हैं हम दुनिया
यह बताने के लिए
इसे जायज सिद्ध करना होगा।

-1997

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