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रेत / शरद कोकास

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यूँ ही पड़ी रहती नदी किनारे रेत
बाढ़ आती तो बहा ले जाती
समुद्र किनारे पड़ी होती रेत
तो पृथ्वी के गोल होने का सबूत होती

रेत से छोटा कुछ भी नहीं होता
मगर सीमेंट के साथ मिलकर
अट्टालिकाएँ बनाती
रेतघड़ी को इतिहास में दर्ज़ करने वाली रेत
वक्त की तरह हाथों से फिसल जाती

चट्टानों का चकनाचूर दर्प होती रेत
हवाओं में आँख की किरकिरी बनती
तूफानों में सिर चढ़ती

बच्चों के हाथों थपकी पाकर
घरौंदों में बदल जाती यही रेत
इसी की तह तक पहुँचकर
मुसाफिर पानी की बूँद ढूँढ़ते।

-1997