भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वरली सी फेस / शरद कोकास

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:34, 1 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शरद कोकास |अनुवादक= |संग्रह=हमसे त...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रेत पर कीड़े-मकोड़े चुगने वाली चिड़िया की तरह
अंधेरा होते ही बाहर आ जाती हैं
ढेर सारी स्मृतियाँ
फुदकती हैं मन की कठोर चट्टानों पर
दरारों में झाँकती हैं
शायद कहीं कुछ जल अभी भी शेष हो
सुख की तरह उछलती कोई नन्ही मछली
चोंच में दबाकर
फिर गुम हो जाती हैं अंधेरे में कहीं।

-2009