भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कागज़ की नाव / श्रीनाथ सिंह
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:59, 4 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीनाथ सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
यह कागज की नाव हमारी,
यह टब बना समुंदर भारी।
मुन्नी चुन्नी चम्पा भोला,
मोहन सोहन श्याम मुरारी।
इस सागर के खड़े किनारे,
हम सब संगी साथी प्यारे।
अपनी नाव चलाते हैं हम,
इधर न आ तू तेज हवा रे ।
हम सब भारत माँ चाकर,
हम सब वीर साहसी सुंदर।
बन्धन मुक्त करेंगे जग को,
सचमुच के जलयान चलाकर।