भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अब नहीं / स्वरांगी साने
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:41, 5 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्वरांगी साने |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तुमने कहा था मुझे परेशां करना बंद करो
मैंने अपने होने की ज़रा सी सरसराहट भी नहीं रखी तुम्हारे जीवन में
तुम्हारी हर बात मानना
मेरी पूजा में शामिल है
जैसे
साँस लेना जीने में।