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हमको आदत है चोट खाने की / सिया सचदेव
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हमको आदत है चोट खाने की
ज़ब्त को अपने आज़माने की
तुम कहो तो कहो अदा इसको
है तो तरकीब दिल जलाने की
आज के दौर में उम्मीद ए वफ़ा
बात करते हो किस ज़माने की
मेरी ख़ुशियाँ तुम्हें खटकती हैं
बात करते हो दिल दुखाने की
ग़र बुरा कुछ नहीं किया तुमने
क्या ज़रूरत हैं मुँह छुपाने की
वो तो मुझ पर ही आज़माएंगे
सूरतें सारी दिल दुखाने की
दो घड़ी तो सिया कि सुन लेते
इतनी जल्दी भी क्या थी जाने की