भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अप्प दीपो भव / शुद्धोदन 3 / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:18, 5 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=अ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राजा हैं
हाथों में छत्र-मुकुट लिये खड़े

एक-एककर
सारे कुँवर उन्हें
केंचुल-सा छोड़ गये
जात-नात-गोत
सभी के बंधन तोड़ गये

बरगद थे वे -
उनके हरे सभी पात झड़े

बूढ़े वे -
छत्र-मुकुट-सिंहासन
उनको हैं भार हुए
बिरवे जो रोप थे
सभी छार-छार हुए

आसपास
सारे आकाशकुसुम झरे पड़े

यादें ही हैं पिछली
आगे कुछ जीने को नहीं बचा
घिसट रहे -
पाँवों के नीचे है रेत तचा
                                                        
सोच रहे
कब तक यों चलना है
             रेती में गड़े-गड़े