भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अप्प दीपो भव / अंगुलिमाल 1 / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:26, 5 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=अ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बहुत देर
रहा मौन
एकाकी अंगुलिमाल
उसने था सिरजा दुख
निर्मम हत्याओं का
'राच्छस' था हुआ क्रूर
लोक की कथाओं का
उसे नहीं
व्यापा था
इच्छा का मकड़जाल
यही सत्य था उसका -
कटी हुई उँगलियाँ
डरे हुए नगर-गाँव
वन-पर्वत-घाटियाँ
आसपास
उसके थे
लहू-भरे सिर्फ ताल
और तभी आये थे बुद्ध
किसी भोर-सपने-से
और सब अपरिचित थे
वही लगे अपने-से
उन्हें देख
जागे थे
उसके मन में सवाल