भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत यशस्वी हैं / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:50, 7 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुनो, भाई
गीत अपने भी यशस्वी हैं
 
इन्हीं गीतों को बदौलत
लोग हमको जानते हैं
दुआ इनकी -
हम स्वयं को भी
सही पहचानते हैं
 
गीत अपने हैं
इसी से हम मनस्वी हैं
 
शुक्रिया है गीत का
हम बीत कर भी नहीं बीते
भाई, वरना कम नहीं थे
साँस के अपने फज़ीते
 
गीत तप है
और हम उसके तपस्वी हैं
 
गीत होना, भाई, मानें
बाँसुरी की रीत होना है
मंत्र अपना
ढाई आखर का सनातन
खुदी खोना है
 
गीत रस है
संग उसके हम रसस्वी हैं