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कहो एलिस / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र
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कहो एलिस!
तुम कहाँ से आ रही हो
सामने मैदान से
क्या देखकर लौटीं कबूतर
वहीं तो है शांति का
सबसे अनोखा, हाँ, दुआघर
क्या वहाँ से
ढाई आखर की दुआ तुम ला रही हो
कहीं पीछे तो नहीं थीं
तुम पके अमरूद खातीं
या वहीं पर किसी चिड़िया संग
तुम थीं गुनगुनातीं
क्या वही मीठा
रसीला गीत तुम गा रही हो
तुम बुलातीं थीं सुबह को
क्या चढ़ीं चुपचाप छत पर
या किसी एकांत कोने में
लुकीं थीं कहीं भीतर
क्या हमें तुम
नई कुछ बातें बताने जा रही हो