भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुनहरा चाँद पिघला / पंख बिखरे रेत पर / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:34, 15 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=प...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
फिर नदी का रंग बदला
धूप लौटी
देखकर खुश हो रहे जल
पास बैठी
हँस रही चट्टान निश्छल
पूछता - क्या बात
उनसे घाट पगला
नाव पर नन्हीं हवाएँ
गा रहीं हैं
रात भर छायाएँ
पानी में रहीं हैं
छुएँ दिन को
आओ, उनको करें उजला
रेत पर शंखी पड़ी है
ओस ओढ़े
उड़ रहे जलपंछियों के
नये जोड़े
नदी में जैसे
सुनहरा चाँद पिघला