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प्राणमती को स्वप्न / प्रेम प्रगास / धरनीदास

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चौपाई:-

तब कह कुंअर सुनो हो माता। सो न चले जो रच्यो विधाता॥
यहि क्षण गौरी कहु मोहि पांहा। योगी है सरवर तट छांहा॥
कहा हमार श्रवण करु येही। राजकुंअर वर पूर्व सनेही॥
पंचवटी है सागरपारा। देवनरायन पिता भवारा॥
विम वंश जानत संसारा। तेहि कुलको यह राजकुमारा॥

विश्राम:-

हम अवराध्यो जाहि लगि, सो वर दीन्हो मोहि॥
राखि सको तो राखहू, धोख धरयो ना मोहि॥169॥