भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नाम महातम / शब्द प्रकाश / धरनीदास

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:20, 21 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धरनीदास |अनुवादक= |संग्रह=शब्द प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

निर्मल नाम निरंजन को, अभि अन्तर ध्यान सदा धरु रे।
मिलनी गनिका गज गिद्ध तरे, मृगराज अजामिल व्याधहुरे॥
सावज-कारण श्वान भरै, तिमि तून भरो जग-धन्धहुँ रे।
धरनी धरु संगति साधुनकी, जपु माधव 2 माधव रे॥3॥