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चेतावनी 3 / शब्द प्रकाश / धरनीदास

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एक चारि को सम्पति संगति है, इतनो लगि कौन मनी करना।
एक मालिक नाम धरे दिलमें, धरनी भवसागर जो तरना॥
निज हँक्क पिछानु हकीकत जानु, न छोड इमानदुनीधर ना।
पगु पीर गहो पर पीर हरो, जियना न कछू हक है मरना॥10॥