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गंगा / शब्द प्रकाश / धरनीदास
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दरशते दूत-यमराज हू के लाज होत, परसेते पलु माँह हरे राशि पापकी।
एक बुन्दु जल पिये हिये सुधि सिद्धि होत, धरनी कहत कहा चलि यम-वाप की॥
वासव विरंचि सनकादि शिव आदि गहे, कहे और कौन महिमा तिहारे आध की।
कोई बौरे शीश ईश-जटावासी मध्य तेहि, अगति तजत तले कँचुली ज्यों साँपकी॥22॥