भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्यारे का पंथ / शब्द प्रकाश / धरनीदास

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:12, 21 जुलाई 2016 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

त्यागि घर वार लोक-चार मया मोह, जारि, धरनी विना विकार सार वैन वोलहीं।
जीव-दया जीवन धरि हियामें हुलास करि, हीरा मणि मोती झरे मोलके अमोल हीं॥
अनसुनी सुनहि अदेख देख देखि कँह, अगम को सुगम अखोल द्वार खोलहीं।
वावरे वेचारे मनियारे मतवारे भगे, प्यारे की॥28॥