Last modified on 22 जुलाई 2016, at 02:07

शृंगार रस / रस प्रबोध / रसलीन

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:07, 22 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रसलीन |अनुवादक= |संग्रह=रस प्रबोध /...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

शृंगार रस

सर्वप्रथम वर्णन का कारण

रस को रूप बखानि कै बरनौ नौ रस नाम।
अब बरनत सिंगार कों जाही ते सब काम।।60।।

तेहि सिंगार को देवता कृष्ण लीजिऔ जानि।
और बरनहूँ कृष्ण लौं कृष्ण बरन पहिचानि।।61।।

सोइ देवतादिकन मैं सब के हैं सिरताज।
याते उनको रस भयउ सबन माहि रसराज।।62।।

अरु विबिचारी सकल कवि याही रसमय होत।
याहू ते सब रसनि मैं यह रसराउ उदोत।।63।।

शृंगार रस में आठों रसों के व्यभिचारी के उदाहरण

मोहन लखि यह सबनि ते है उदास दिन राति।
उमहति हँसति बकति डरति विगचति विलखि रिसाति।।64।।

जब निकस्यो सब रसन मैं यह रसराज कहाइ।
तब बरन्यौ याकौ कविन सब तें पहिले ल्याइ।।65।।