नायिका-भेद / रस प्रबोध / रसलीन
गुण क्रम से कथनम
होइ नहीं ह्वै कै मिटै नाहक हूँ जिहि मान।
कहै उत्तमा मध्यमा अधमायुक्त प्रमान॥462॥
उत्तमा उदाहरण
कहूँन औगुन कंत को लखौ न हित के जोर।
पिय भयंक मुख के भये रमनी नैन चकोर॥463॥
जदपि मधुर रस लेत है सब फूलन मैं जाइ।
तदपि मालती के हिये औगुन नहिं ठहराइ॥464॥
मध्या-उदाहरण
पिय सनमुख सनमुख रहति विमुख विमुख ह्वै जाति।
धन दरपन प्रतिबिंब लौं तेरी गति दरसाति॥465॥
बिनु सनेह रूखी परति लहि सनेह चिकनाइ।
पिय सुभाइ कुच कवन के तिन मैं होति लखाइ॥466॥
उधमा-उदाहरण
ज्यौं ज्यैं आदर सों ललन पानिय देत बनाइ।
त्यौं त्यौं भामिनि मैन लौं खिन खिन ऐंठति जाइ॥467॥
बिन ही औगुन पगन परि जदपि मनावहि लाल।
तदपि मान हूँ पै सदा रहै अनमनी बाल॥468॥
नायिका-भेद
जाति कथन
पùिनी-लक्षण
तन अमोल कुंदन बरन सुभ सुगंध सुकुमारि।
सूछम भोजन रोस रति सो पदमिनी निहारि॥469॥
उदाहरण
तन सुवास दृग सलज सुभ मन सुचि करम सुनीति।
इनि सुबरन बरुनी लई जगत निकाई जीति॥470॥
सोनों और सुगंध है बाल सलोनो गात।
जापै तिय चख भौंर लौं सदा रहत मँडरात॥471॥
जेहि मृगनैनी कोरहै नृत्त गीत मैं ध्यान।
चोंप सदा पिय चित्र सों वह चित्रिनी सुजान॥472॥
चित्रणी-उदाहरण
तिय निजु पिय को चित्र मैं सौतुष दरसन पाइ।
गाइ गाइ नृत्तति रहति भाँति भाँति के भाइ॥473॥
मित्रन चितवत है कहा चित्र रही चितु लाइ।
पत्री हेरति है कोऊ पतरो सनमुख पाइ॥474॥
संखिनी-लक्षण
देह छीन मोटी नसैं कुच लघु निलज निसंक।
कोपवती नख देइ रति संखिनि पीकौ अंक॥474॥
उदाहरण
सनक हियो लखि लाल कों यह मन होति संदेह।
नखन खोदि चाहत जियो लालन को मन गेह॥476॥
हस्तिनी-लक्षण
थूल अंग लोमन छयो गोरी भूरे केस।
गजगौनी उरगंधिनी यहे हस्तिनी भेस॥477॥
उदाहरण
ठेगनी मोटी गोरटी जोबन मद ऐडाति।
सखिन संग गजगामिनी चली ठान सों जाति॥478॥
नायिका भेद
लोक-भेद के अनुसार
इंद्रानी दिव्या कहै नर तिय कहै अदिव्य।
सिय लौ जो तिय औतरे सो कहि दिव्यादिव्य॥479॥