भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हसन-हुसैन की स्तुति / रसलीन
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:43, 22 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रसलीन |अनुवादक= |संग्रह=फुटकल कवि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
आये जब भूम तब तिहूँ लोक परी धूम,
सब जग पग चूम लीन्हें सुख चैन हैं।
नाने जिनके रसूल पिता अली मकबूल,
भाई हैं बुतूल जिन जाये अच्छी रैन हैं।
ऐसो कुल सुभ जाको कौन सरबर ताको,
मेरो मन सदा छाको बोलत पी बैन है।
जाके दर दरमादे होइ जात साहजादे,
दीन दुनी को खुलादे हसन हुसैन हैं॥13॥