भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अष्ट नायिका लच्छन / रसलीन

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:46, 22 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रसलीन |अनुवादक= |संग्रह=फुटकल कवि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रोषित कहत तासों जाको है बिदेस ईस,
खंडित को कंत नित पर घ्ज्ञर बसावई।
कलहंत्र सो है जो किए कलह पछताइ,
बिप्रलब्ध नाँह को सहेट में न पावई।
उत्कंठ करै तर्क काहें तें न आए नांह,
बासक पी आवन तें आपको सजावई।
स्वाधीनपतिका पति के सदा ही आधीन रहै;
अभिसार साहस कै पीतम पैन जावई॥49॥