भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बसंत ऋतु नायिका / रसलीन
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:08, 23 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रसलीन |अनुवादक= |संग्रह=फुटकल कवि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
1.
जाही जोई जाने है सो दरस सदा ही चाहै,
रूप मंजरी के सर केवल निकाई है।
सौहै कुच गेंद पै सिंगार हार मालती के
मोतिया से दंत कुंद केतक लजाई है।
सेवत हजार मखमल में कमल पद,
रसलीन पछतानी दाऊदी सुहाई है।
चाँदनी सी सेत सारी चंपक बरन प्यारी
बनवारी पास फुलवारी बनि आई है॥68॥
2.
पंचरग चूनरी सुमन सब फूले तामें
भूषन के फुंदन भँवर छबि पाई है।
मुकुत स्रवत ते रसाल बौर देखियत,
रसलीन कंठ ध्वनि कोकिल लजाई है।
करन कै पल्लौ नव पल्लव समान लसैं,
स्वाँस कै सुबास पौन दच्छिन सुहाई है।
कियो जागे मन मनमथ पार ऐसो तत
प्यारी आज कंत पै बसत बनि आई है॥69॥