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गैलारौ / गुणसागर 'सत्यार्थी'

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जीकौ
ओर न छोर
ऐसी है गैल,
गैल गहें चलो जात
हेरौ, वौ गैलारौ।
किदना निगौ?
कोऊ नइँ जानत
बस निगत सबइ नें देखौ,
मानों
चका होय गाड़ी कौ,
भमत जात है ऐसें
जैसें पथरा ढँड़कत-
चूना पीसत की चकिया कौ।

लीला-धौरा
खैंचत जिऐ समै के बैला
और संग में
पिसत जात है दिन चूना-से
हराँ-हराँ सब
जिँदगानी के।