ऐसो निज नाम नजर नहिं आया।
निकटई है तो निहार न देखत लेखत-लेखत जनम गमायो।
फर्क है बीज नीचमत डालत बिन गुरु संध चीन नहिं पायो।
व्याप रहे सब ठौर एक सो बिन विवेक जुग-जुग डहकायो।
जूड़ीराम जैसई को तैसो ने कहुं गयो बहुरि नहिं आयो।
ऐसो निज नाम नजर नहिं आया।
निकटई है तो निहार न देखत लेखत-लेखत जनम गमायो।
फर्क है बीज नीचमत डालत बिन गुरु संध चीन नहिं पायो।
व्याप रहे सब ठौर एक सो बिन विवेक जुग-जुग डहकायो।
जूड़ीराम जैसई को तैसो ने कहुं गयो बहुरि नहिं आयो।