भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बाला सोई जपै हर माला / संत जूड़ीराम
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:12, 29 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संत जूड़ीराम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बाला सोई जपै हर माला।
गगन मंडल में आसन लागी सुनत शबद परवीन रसाला।
कर्म जाल जम जाल दूरकर पूरन प्रेम नाम मतवाला।
अजपा जपत सिवत कर गुरु की है अवधूत अजब रंग वाला।
बैठ महल में कहल बुझायो छिमा शील संतोष पियाला।
जूड़ीराम गुरु ज्ञान मगन है क्या कर सकत जगत जो जाला।