भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हर बिन हारो जगत लराई / संत जूड़ीराम
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:14, 29 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संत जूड़ीराम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हर बिन हारो जगत लराई।
मान गुमान जान मत सानो ऐसेई डंभ चलाई।
हेरत हाल जाल अपनो की चित संतोष न पाई।
करत विचार हार नाहिं मानत कोट जतन समझाई।
अपनी समझ आप में भूलो बहुविधि भार लदाई।
जूड़ीराम नाम बिन चीन्हें फिर-फिर गोटा खाई।